हालत ऐसे भी… नल और टोटियां भी सड़ जाती हैं

उज्जैन ।  पीएचई ने सिंहस्थ योजना में गऊघाट प्लांट से त्रिवेणी विहार कॉलोनी तक 11 करोड़ रु. खर्च कर 500 एमएम की नई राइजिंग पाइप लाइन डाली है। सिंहस्थ में इससे शनिमंदिर और त्रिवेणी विहार की टंकी को पानी दिया गया था। 6 करोड़ रु. से गऊघाट पर नया फिल्टर प्लांट बनाया। नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना से पानी भी मिल रहा। बावजूद अभी इन कॉलोनियों को पानी देने की कोई व्यवस्था नहीं है। पीएचई का तर्क है कॉलोनाइजरों व यूडीए की कॉलोनियां नगर निगम को हैंडओवर नहीं हुई है। उन्हें पानी देने के लिए इंदौर रोड पर बड़ी टंकी बनाना भी जरूरी है। कॉलोनियों की पाइप लाइनें पीएचई की लाइन से जोड़ने के लिए जरूरी कार्रवाई करना है। इससे भी ज्यादा जरूरी है पानी का बंदोबस्त। नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना से निरंतर पानी मिलेगा तभी इन कॉलोनियों के लिए पानी देने का बंदोबस्त हो सकता है। ये सारे फैसले निगम परिषद और राज्य सरकार के स्तर पर होना है।

अमृत मिशन में मिलेगा पानी

नगर की जलप्रदाय व्यवस्था सुधारने के लिए अमृत मिशन में 25 करोड़ रु. मिले हैं। एजेंसी से सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे में ये कॉलोनियां शामिल हैं। इंदौर रोड पर नई टंकी बना कर इन्हें पानी दिया जाएगा। इन कामों में एक साल लगेगा। यानी अभी इन कॉलोनियों में नलों से गंभीर या शिप्रा का पानी मिलने की कोई संभावना नहीं है। इन्हें नलकूपों पर ही निर्भर रहना होगा।

एक साल बाद मिलेगा पानी

* अमृत मिशन के तहत सर्वे कराया जा रहा है। नई टंकी बनेगी। इसमें एक साल लग सकता है। इसके बाद ही पानी मिलेगा। हंसकुमार जैन, अधीक्षण यंत्री पीएचई

जरुरत पड़ी तो आंदोलन

* मैं विधायक, सांसद व महापौर, कमिश्नर को अवगत करवाता आ रहा हूं। सभी आश्वासन दे रहे हैं। जरुरत पड़ी तो सड़क पर उतरूंगा। संतोष यादव, पार्षद

अफसर करेंगे निराकरण

* इंदौर रोड की समस्या हमारे संज्ञान में है। निराकरण के लिए कमिश्नर व पीएचई के अफसरों को कह रखा है। मीना जोनवाल, महापौर

यह है चार साल का आदित्य। पैर दिखाते हुए कहता है नहाने से सड़ गया, खुजली और जलन होती है।

बोरिंग के पानी में तीन गुना हार्डनेस

मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एचएस शर्मा बताते हैं कि पीने के पानी में प्रति लीटर में 250 मिलीग्राम से ज्यादा हार्डनेस नहीं होना चाहिए लेकिन इन कॉलोनियों के पानी में 500 से 800 मिलीग्राम तक हार्डनेस है। बोरिंग के पानी में टोटल डिजाल्व साॅलिड जिन्हें हम आम भाषा में घुले हुए कण कहते हैं इनकी मात्रा भी प्रति लीटर में 400 से 500 मिलीग्राम की बजाय 1200 से 1800 है।

अच्छी क्वालिटी के अारओ सिस्टम से बचा जा सकता

जिला अस्पताल के डॉ. जीएस धवन का कहना है ऐसे पानी में नुकसानदायक कण अधिक होते हैं। इनसे बर्तनों में परत तो जमती है, इनके सेवन से पथरी व स्कीन की परेशानी होना आम है। अच्छी क्वालिटी के आरओ सिस्टम से इससे बचा जा सकता है।

आकांक्षा परिसर, अर्चना परिसर, आराधना परिसर, तृप्ति विहार, जयंत परिसर, फ्रेंड्स कॉलोनी, स्वास्तिक नगर, विद्यापति नगर, आदिनाथ काॅलोनी, शिवम परिसर, गंगा नगर, न्यू अभिषेक नगर, अर्पिता एंड ग्रुप, देवालय, तिरुपति हाइट्स, स्वाति बिहार, अथर्व-वृंदावन कॉलोनी, महेश विहार, काला पत्थर, सांवरिया परिसर, कीर्ति नगर, अमरनाथ एवेन्यू, मोती नगर, महावीर बाग, त्रिवेणी हिल्स, चाणक्यपुरी, दीप्ती विहार सहित आसपास की अन्य कॉलोनी व बस्तियां। कॉलोनाइजरों ने 35-40 मकानों के बीच में एक-एक बोरिंग करवाए थे। बाद में लोगों ने व्यक्तिगत भी कर लिए लेकिन पानी पीने लायक नहीं निकला।

इन कॉलोनियों में हैं समस्या, 5 हजार परिवार प्रभावित

अब तक कनेक्शन नहीं दिए: इन कॉलोनियों के रहवासियोंं में तीन वर्ष पहले तब पेयजल की समस्या से निजात मिलने की उम्मीद जागी थी जब तापी ने वार्ड में पाइप लाइन बिछाई थी लेकिन लाइन से कनेक्शन अब तक नहीं दिए। तीन वर्ष से पीएचई व तापी के अफसर केवल लाइन की टेस्टिंग होने की बात कहते आ रहे हैं।

* विधानसभा चुनाव के वक्त डॉ. मोहन यादव ने वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद इन कॉलोनियों में नल कनेक्शन करवाना मेरी प्राथमिकता होगी। अब तक कुछ नहीं हुआ।

* प्रभात संवाद के दौरान अर्पिता कॉलोनी में निगम कमिश्नर आशीष सिंह ने क्षेत्रीय पार्षद संतोष यादव को 200 लोगों की मौजूदगी में भरोसा दिलाया था कि सात दिन में पाइप लाइन से पानी मिलने लगेगा। महीनों बीते, स्थिति जस की तस है।

* हर डेढ़-दो साल में नल की टोटी व छड़े बदलना पड़ती है। सड़ जाती है। तांबे-पीतल की जगह प्लास्टिक के बर्तन काम में लेेते हैं। सीमेंट टैंक में एक इंच की परत जम जाती है। लोहे के ढक्कन सड़ गए। पानी खरीदे तो महीने के 1000-1200 रु. खर्च करना पड़ते हैं। इलाज खर्च अलग। (जैसा- आकांक्षा परिसर के लोगों ने बताया।)

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